उस खुशी का हिसाब कैसे हो,
अगर वो
पूछ जनाब कैसे हो।
तेरे बगैर सब होता है,
बस गुज़ारा नहीं
होता।
खुदा करे वो मोहब्बत जो तेरे नाम से है,
हजार साल गुजरने
पे भी जवान ही रहे।
इतनी मनमानियां अच्छी नहीं होती
तुम सिर्फ
अपने नहीं मेरे भी हो
मेरे हाथों की लकीरों में समाने वाले,
कैसे छीनेंगे तुझे मुझसे
ज़माने वाले।
किस किस तरह छुपाऊं अब मैं तुम्हें,
मेरी मुस्कान में भी तुम नजर
आने लगे हो।
रूबरू मिलने का मौका मिलता नहीं है रोज,
इसलिए लफ्ज़ों से तुमको
छू लिया मैंने।
तेरे इश्क में इस तरह मैं नीलाम हो जाऊं !
आख़री हो तेरी बोली और
मैं तेरे नाम हो जाऊं !!
न जाने किस तरह का इश्क कर रहे हैं हम,
जिसके हो नहीं सकते उसी के हो रहे हैं हम।